जिनको हमने पर्वत समझा टीले निकले
जिनको हमने पर्वत समझा टीले निकले आदर्शों के गात बड़े बर्फ़ीले निकले हमको प्यास निचोड़ेगी आख़िर कब तक यों खोदे जितने कुएँ सभी रेतीले निकले राजनीति कि मुन्दरी में जो जड़े गये, वो नग सारे, आख़िर पत्थर चमकीले निकले कैसी अनहोनी है कि अबके फागुन में सुर्ख़ गुलाबों के चेहरे भी पीले … Continue reading जिनको हमने पर्वत समझा टीले निकले
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